Monday 15 July 2013

वन्दे मातरम Vs जन-गण-मन

वन्दे मातरम की कहानी
ये वन्दे मातरम नाम का जो गान है जिसे हम राष्ट्रगीत के रूप में जानते हैं उसे बंकिम चन्द्र चटर्जी ने 7 नवम्बर 1875 को लिखा था | बंकिम चन्द्र चटर्जी बहुत ही क्रन्तिकारी विचारधारा के व्यक्ति थे | देश के साथ-साथ पुरे बंगाल में उस समय अंग्रेजों के खिलाफ जबरदस्त आन्दोलन चल रहा था और एक बार ऐसे ही विरोध आन्दोलन में भाग लेते समय इन्हें बहुत चोट लगी और बहुत से उनके दोस्तों की मृत्यु भी हो गयी | इस एक घटना ने उनके मन में ऐसा गहरा घाव किया कि उन्होंने आजीवन अंग्रेजों के खिलाफ लड़ने का संकल्प ले लिया उन्होंने | बाद में उन्होंने एक उपन्यास लिखा जिसका नाम था "आनंदमठ", जिसमे उन्होंने अंग्रेजों के खिलाफ बहुत कुछ लिखा, उन्होंने बताया कि अंग्रेज देश को कैसे लुट रहे हैं, ईस्ट इंडिया कंपनी भारत से कितना पैसा ले के जा रही है, भारत के लोगों को वो कैसे मुर्ख बना रहे हैं, ये सब बातें उन्होंने उस किताब में लिखी | वो उपन्यास उन्होंने जब लिखा तब अंग्रेजी सरकार ने उसे प्रतिबंधित कर दिया | जिस प्रेस में छपने के लिए वो गया वहां अंग्रेजों ने ताला लगवा दिया | तो बंकिम दा ने उस उपन्यास को कई टुकड़ों में बांटा और अलग-अलग जगह उसे छपवाया औए फिर सब को जोड़ के प्रकाशित करवाया | अंग्रेजों ने उन सभी प्रतियों को जलवा दिया फिर छपा और फिर जला दिया गया, ऐसे करते करते सात वर्ष के बाद 1882 में वो ठीक से छ्प के बाजार में आया और उसमे उन्होंने जो कुछ भी लिखा उसने पुरे देश में एक लहर पैदा किया | शुरू में तो ये बंगला में लिखा गया था, उसके बाद ये हिंदी में अनुवादित हुआ और उसके बाद, मराठी, गुजराती और अन्य भारतीय भाषाओँ में ये छपी और वो भारत की ऐसी पुस्तक बन गया जिसे रखना हर क्रन्तिकारी के लिए गौरव की बात हो गयी थी | इसी पुस्तक में उन्होंने जगह जगह वन्दे मातरम का घोष किया है और ये उनकी भावना थी कि लोग भी ऐसा करेंगे | बंकिम बाबु की एक बेटी थी जो ये कहती थी कि आपने इसमें बहुत कठिन शब्द डाले है और ये लोगों को पसंद नहीं आयेगी तो बंकिम बाबु कहते थे कि अभी तुमको शायद समझ में नहीं आ रहा है लेकिन ये गान कुछ दिन में देश के हर जबान पर होगा, लोगों में जज्बा पैदा करेगा और ये एक दिन इस देश का राष्ट्रगान बनेगा | ये गान देश का राष्ट्रगान बना लेकिन ये देखने के लिए बंकिम बाबु जिन्दा नहीं थे लेकिन जो उनकी सोच थी वो बिलकुल सही साबित हुई| 1905 में ये वन्दे मातरम इस देश का राष्ट्रगान बन गया | 1905 में क्या हुआ था कि अंग्रेजों की सरकार ने बंगाल का बटवारा कर दिया था | अंग्रेजों का एक अधिकारी था कर्जन जिसने बंगाल को दो हिस्सों में बाट दिया था, एक पूर्वी बंगाल और एक पश्चिमी बंगाल | इस बटवारे का सबसे बड़ा दुर्भाग्य ये था कि ये धर्म के नाम पर हुआ था, पूर्वी बंगाल मुसलमानों के लिए था और पश्चिमी बंगाल हिन्दुओं के लिए, इसी को हमारे देश में बंग-भंग के नाम से जाना जाता है | ये देश में धर्म के नाम पर पहला बटवारा था उसके पहले कभी भी इस देश में ऐसा नहीं हुआ था, मुसलमान शासकों के समय भी ऐसा नहीं हुआ था | खैर ...............इस बंगाल बटवारे का पुरे देश में जम के विरोध हुआ था , उस समय देश के तीन बड़े क्रांतिकारियों लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक, लाला लाजपत राय और बिपिन चन्द्र पल ने इसका जम के विरोध किया और इस विरोध के लिए उन्होंने वन्दे मातरम को आधार बनाया | और 1905 से हर सभा में, हर कार्यक्रम में ये वन्देमातरम गाया जाने लगा | कार्यक्रम के शुरू में भी और अंत में भी | धीरे धीरे ये इतना प्रचलित हुआ कि अंग्रेज सरकार इस वन्दे मातरम से चिढने लगी | अंग्रेज जहाँ इस गीत को सुनते, बंद करा देते थे और और गाने वालों को जेल में डाल देते थे, इससे भारत के क्रांतिकारियों को और ज्यादा जोश आता था और वो इसे और जोश से गाते थे | एक क्रन्तिकारी थे इस देश में जिनका नाम था खुदीराम बोस, ये पहले क्रन्तिकारी थे जिन्हें सबसे कम उम्र में फाँसी की सजा दी गयी थी | मात्र 14 साल की उम्र में उसे फाँसी के फंदे पर लटकाया गया था और हुआ ये कि जब खुदीराम बोस को फाँसी के फंदे पर लटकाया जा रहा था तो उन्होंने फाँसी के फंदे को अपने गले में वन्दे मातरम कहते हुए पहना था | इस एक घटना ने इस गीत को और लोकप्रिय कर दिया था और इस घटना के बाद जितने भी क्रन्तिकारी हुए उन सब ने जहाँ मौका मिला वहीं ये घोष करना शुरू किया चाहे वो भगत सिंह हों, राजगुरु हों, अशफाकुल्लाह हों, चंद्रशेखर हों सब के जबान पर मंत्र हुआ करता था | ये वन्दे मातरम इतना आगे बढ़ा कि आज इसे देश का बच्चा बच्चा जानता है |

जन-गण-मन की कहानी
 
सन 1911 तक भारत की राजधानी बंगाल हुआ करता था | सन 1905 में जब बंगाल विभाजन को लेकर अंग्रेजो के खिलाफ बंग-भंग आन्दोलन के विरोध में बंगाल के लोग उठ खड़े हुए तो अंग्रेजो ने अपने आपको बचाने के लिए के कलकत्ता से हटाकर राजधानी को दिल्ली ले गए और 1911 में दिल्ली को राजधानी घोषित कर दिया | पूरे भारत में उस समय लोग विद्रोह से भरे हुए थे तो अंग्रेजो ने अपने इंग्लॅण्ड के राजा को भारत आमंत्रित किया ताकि लोग शांत हो जाये | इंग्लैंड का राजा जोर्ज पंचम 1911 में भारत में आया | रविंद्रनाथ टैगोर पर दबाव बनाया गया कि तुम्हे एक गीत जोर्ज पंचम के स्वागत में लिखना ही होगा | उस समय टैगोर का परिवार अंग्रेजों के काफी नजदीक हुआ करता था, उनके परिवार के बहुत से लोग ईस्ट इंडिया कंपनी के लिए काम किया करते थे, उनके बड़े भाई अवनींद्र नाथ टैगोर बहुत दिनों तक ईस्ट इंडिया कंपनी के कलकत्ता डिविजन के निदेशक (Director) रहे | उनके परिवार का बहुत पैसा ईस्ट इंडिया कंपनी में लगा हुआ था | और खुद रविन्द्र नाथ टैगोर की बहुत सहानुभूति थी अंग्रेजों के लिए | रविंद्रनाथ टैगोर ने मन से या बेमन से जो गीत लिखा उसके बोल है "जन गण मन अधिनायक जय हे भारत भाग्य विधाता" | इस गीत के सारे के सारे शब्दों में अंग्रेजी राजा जोर्ज पंचम का गुणगान है, जिसका अर्थ समझने पर पता लगेगा कि ये तो हकीक़त में ही अंग्रेजो की खुशामद में लिखा गया था | इस राष्ट्रगान का अर्थ कुछ इस तरह से होता है "भारत के नागरिक, भारत की जनता अपने मन से आपको भारत का भाग्य विधाता समझती है और मानती है | हे अधिनायक (Superhero) तुम्ही भारत के भाग्य विधाता हो |  तुम्हारी जय हो ! जय हो ! जय हो !  तुम्हारे भारत आने से सभी प्रान्त पंजाब, सिंध, गुजरात, मराठा मतलब महारास्त्र, द्रविड़ मतलब दक्षिण भारत, उत्कल मतलब उड़ीसा, बंगाल आदि और जितनी भी नदिया जैसे यमुना और गंगा ये सभी हर्षित है, खुश है, प्रसन्न है , तुम्हारा नाम लेकर ही हम जागते है और तुम्हारे नाम का आशीर्वाद चाहते है | तुम्हारी ही हम गाथा गाते है | हे भारत के भाग्य विधाता (सुपर हीरो ) तुम्हारी जय हो जय हो जय हो | "

जोर्ज पंचम भारत आया 1911 में और उसके स्वागत में ये गीत गाया गया | जब वो इंग्लैंड चला गया तो उसने उस जन गण मन का अंग्रेजी में अनुवाद करवाया | क्योंकि जब भारत में उसका इस गीत से स्वागत हुआ था तब उसके समझ में नहीं आया था कि ये गीत क्यों गाया गया और इसका अर्थ क्या है | जब अंग्रेजी अनुवाद उसने सुना तो वह बोला कि इतना सम्मान और इतनी खुशामद तो मेरी आज तक इंग्लॅण्ड में भी किसी ने नहीं की | वह बहुत खुश हुआ | उसने आदेश दिया कि जिसने भी ये गीत उसके (जोर्ज पंचम के) लिए लिखा है उसे इंग्लैंड बुलाया जाये | रविन्द्र नाथ टैगोर इंग्लैंड गए | जोर्ज पंचम उस समय नोबल पुरस्कार समिति का अध्यक्ष भी था |  उसने रविन्द्र नाथ टैगोर को नोबल पुरस्कार से सम्मानित करने का फैसला किया | टैगोर ने कहा की आप मुझे नोबल पुरस्कार देना ही चाहते हैं तो मैंने एक गीतांजलि नामक रचना लिखी है उस पर मुझे दे दो लेकिन इस गीत के नाम पर मत दो और यही प्रचारित किया जाये क़ि मुझे जो नोबेल पुरस्कार दिया गया है वो गीतांजलि नामक रचना के ऊपर दिया गया है | जोर्ज पंचम मान गया और रविन्द्र नाथ टैगोर को सन 1913 में  गीतांजलि नामक रचना के ऊपर नोबल पुरस्कार दिया गया |

रविन्द्र नाथ टैगोर की अंग्रेजों के प्रति ये सहानुभूति ख़त्म हुई 1919 में जब जलिया वाला कांड हुआ और गाँधी जी ने उनको पत्र लिखा और कहा क़ि अभी भी तुम्हारी आँखों से अंग्रेजियत का पर्दा नहीं उतरेगा तो कब उतरेगा, तुम अंग्रेजों के इतने चाटुकार कैसे हो गए, तुम इनके इतने समर्थक कैसे हो गए ?  फिर गाँधी जी स्वयं रविन्द्र नाथ टैगोर से मिलने गए और कहा कि अभी तक तुम अंग्रेजो की अंध भक्ति में डूबे हुए हो ? तब जाकर रविंद्रनाथ टैगोर की नीद खुली | इस काण्ड का टैगोर ने विरोध किया और नोबल पुरस्कार अंग्रेजी हुकूमत को लौटा दिया | सन 1919 से पहले जितना कुछ भी रविन्द्र नाथ टैगोर ने लिखा वो अंग्रेजी सरकार के पक्ष में था और 1919 के बाद उनके लेख कुछ कुछ अंग्रेजो के खिलाफ होने लगे थे | रविन्द्र नाथ टेगोर के बहनोई, सुरेन्द्र नाथ बनर्जी लन्दन में रहते थे और ICS ऑफिसर थे | अपने बहनोई को उन्होंने एक पत्र लिखा था (ये  1919 के बाद की घटना है)  | इसमें उन्होंने लिखा है कि ये गीत 'जन गण मन' अंग्रेजो के द्वारा मुझ पर दबाव डलवाकर लिखवाया गया है | इसके शब्दों का अर्थ अच्छा नहीं है | इस गीत को नहीं गाया जाये तो अच्छा है | लेकिन अंत में उन्होंने लिख दिया कि इस चिठ्ठी को किसी को नहीं दिखाए क्योंकि मैं इसे सिर्फ आप तक सीमित रखना चाहता हूँ लेकिन जब कभी मेरी म्रत्यु हो जाये तो सबको बता दे |  7 अगस्त 1941 को रबिन्द्र नाथ टैगोर की मृत्यु के बाद इस पत्र को सुरेन्द्र नाथ बनर्जी ने ये पत्र सार्वजनिक किया, और सारे देश को ये कहा क़ि ये जन गन मन गीत न गाया जाये |

1941 तक कांग्रेस पार्टी थोड़ी उभर चुकी थी | लेकिन वह दो खेमो में बट गई | जिसमे एक खेमे में बाल गंगाधर तिलक के समर्थक थे और दुसरे खेमे में मोती लाल नेहरु के समर्थक थे | मतभेद था सरकार बनाने को लेकर | मोती लाल नेहरु वाला गुट चाहता था कि स्वतंत्र भारत की क्या जरूरत है, अंग्रेज तो कोई ख़राब काम कर नहीं रहे है, अगर बहुत जरूरी हुआ तो यहाँ के कुछ लोगों को साथ लेकर अंग्रेज साथ कोई संयोजक सरकार (Coalition Government) बने |  जबकि बालगंगाधर तिलक गुट वाले कहते थे कि अंग्रेजो के साथ मिलकर सरकार बनाना तो भारत के लोगों को धोखा देना है | इस मतभेद के कारण कोंग्रेस के दो हिस्से हो गए | एक नरम दल और दूसरा गरम दल | गरम दल के नेता हर जगह वन्दे मातरम गाया करते थे |  (यहाँ मैं स्पष्ट कर दूँ कि गांधीजी उस समय तक कांग्रेस की आजीवन सदस्यता से इस्तीफा दे चुके थे, वो किसी तरफ नहीं थे, लेकिन गाँधी जी दोनों पक्ष के लिए आदरणीय थे क्योंकि गाँधी जी देश के लोगों के आदरणीय थे) | लेकिन नरम दल वाले ज्यादातर अंग्रेजो के साथ रहते थे, उनके साथ रहना, उनको सुनना, उनकी बैठकों में शामिल होना, हर समय अंग्रेजो से समझौते में रहते थे | वन्देमातरम से अंग्रेजो को बहुत चिढ होती थी |  नरम दल वाले गरम दल को चिढाने के लिए 1911 में लिखा गया गीत "जन गण मन" गाया करते थे और गरम दल वाले "वन्दे मातरम" |  नरम दल वाले अंग्रेजों के समर्थक थे और अंग्रेजों को ये गीत पसंद नहीं था तो अंग्रेजों के कहने पर नरम दल वालों ने उस समय एक हवा उड़ा दी कि मुसलमानों को वन्दे मातरम नहीं गाना चाहिए क्यों कि इसमें बुतपरस्ती  (मूर्ति पूजा) है | उस समय मुस्लिम लीग भी बन गई थी जिसके प्रमुख मोहम्मद अली जिन्ना थे, उन्होंने भी इसका विरोध करना शुरू कर दिया | जब भारत सन 1947 में स्वतंत्र हो गया तो संविधान सभा की बहस चली | संविधान सभा के 319 में से 318 सांसद ऐसे थे जिन्होंने बंकिम बाबु द्वारा लिखित वन्देमातरम को राष्ट्र गान स्वीकार करने पर सहमति जताई | बस एक सांसद ने इस प्रस्ताव को नहीं माना | और उस एक सांसद का नाम था पंडित जवाहर लाल नेहरु | अब इस झगडे का फैसला कौन करे, तो वे पहुचे गाँधी जी के पास | गाँधी जी ने कहा कि जन गन मन के पक्ष में तो मैं भी नहीं हूँ और तुम (नेहरु ) वन्देमातरम के पक्ष में नहीं हो तो कोई तीसरा गीत तैयार किया जाये |  तो महात्मा गाँधी ने तीसरा विकल्प झंडा गान के रूप में दिया  "विजयी विश्व तिरंगा प्यारा झंडा ऊँचा रहे हमारा" | लेकिन नेहरु जी उस पर भी तैयार नहीं हुए | नेहरु जी का तर्क था कि झंडा गान ओर्केस्ट्रा पर नहीं बज सकता और जन-गण-मन ओर्केस्ट्रा पर बज सकता है | उस समय बात नहीं बनी तो नेहरु जी ने इस मुद्दे को गाँधी जी की मृत्यु तक टाले रखा और उनकी मृत्यु के बाद नेहरु जी ने जन-गण-मन को राष्ट्र गान घोषित कर दिया और जबरदस्ती भारतीयों पर इसे थोप दिया गया जबकि इसके जो बोल है उनका अर्थ कुछ और ही कहानी प्रस्तुत करते है, और दूसरा पक्ष नाराज न हो इसलिए वन्दे मातरम को राष्ट्रगीत बना दिया गया लेकिन कभी गाया नहीं गया | नेहरु जी कोई ऐसा काम नहीं करना चाहते थे जिससे कि अंग्रेजों के दिल को चोट पहुंचे | जन-गण-मन को इसलिए प्राथमिकता दी गयी क्योंकि वो अंग्रेजों की भक्ति में गाया गया गीत था और वन्देमातरम इसलिए पीछे रह गया क्योंकि इस गीत से अंगेजों को दर्द होता था | 


तो ये इतिहास है वन्दे मातरम का और जन गण मन का | अब ये आप को तय करना है कि आपको क्या गाना है ? 


इतने लम्बे पत्र को आपने धैर्यपूर्वक पढ़ा इसके लिए आपका धन्यवाद् | और अच्छा लगा हो तो इसे फॉरवर्ड कीजिये, आप अगर और भारतीय भाषाएँ जानते हों तो इसे उस भाषा में अनुवादित कीजिये (अंग्रेजी छोड़ कर), अपने अपने ब्लॉग पर डालिए, मेरा नाम हटाइए अपना नाम डालिए मुझे कोई आपत्ति नहीं है | मतलब बस इतना ही है की ज्ञान का प्रवाह होते रहने दीजिये |
जय हिंद
राजीव दीक्षित 

यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता- भाग 1



आदरणीय मित्रों

संस्कृत का एक श्लोक है  - 
यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता -
अर्थात, जहाँ नारी का सम्मान किया जाता है वहाँ देवता निवास करते हैं | बचपन से यह सुनते आ रहे हैं, इसी पर विश्वास किया है | धैर्य, बलिदान, ममता, वात्सल्य, त्याग, लज्जा, समर्पण, शील, माधुर्य, कोमलता और सौम्यता यही नारी सुलभ गुण माने गये और हर आदर्श नारी को इन्हीं गुणों की कसौटी पर क़स कर परखा गया | लेकिन 
अभी कुछ दिनों से भारत देश को gang rape की एक घटना ने हिला कर रख दिया है | मैं बहुत से विद्वानों को बोलते देख रहा हूँ, सुन रहा हूँ और पढ़ भी रहा हूँ लेकिन जो असल बात है वो कोई बता नहीं रहा है | तो मैंने आज ये प्रयास किया है कि इस बात की जड़ (मूल) में आप लोगों को ले जाऊं | कुछ एक ख़राब शब्दों का प्रयोग इस पत्र में है उसके लिए आप मुझे क्षमा कर देंगे ऐसी मेरी विनती है आप सब से, खास तौर से माँ, बहन या बेटियों से मेरी ये विनती है |

भारत में अंग्रेजों के बनाये गए 34735 कानून आज भी चल रहे हैं लेकिन उसमे कुछ कानून ऐसे हैं जिसको उन्होंने अपने हित की रक्षा के लिए बनाया था | उसमे एक था Indian Motor Vehicle Act , आज भी Indian Motor Vehicle Act के तहत किसी भी आरोपी को कठोर सजा नहीं होती, क्यों ? क्योंकि ये कानून जब बना था तो उस समय भारत में मोटर कार और जीप सिर्फ अंग्रेजों और उनके चाटुकार राजाओं के पास ही हुआ करती थी इसलिए उनके हितों के ध्यान में रख कर इस कानून को बनाया गया था | 
और दूसरा था बलात्कार वाला कानून - जब अंग्रेजों की सरकार चल रही थी तो उनका एक तरीका था भारतवासियों पर अत्याचार करने का, तो वो किसी किसान पर अत्याचार करते थे लगान वसूल करने के लिए | किसानों से लगान वसूल किया जाता था और वो उनके कुल उपज का नब्बे प्रतिशत होता था और जो किसान लगान दे देते थे उनको अंग्रेज छोड़ देते थे लेकिन जो किसान लगान नहीं देते थे उनपर अत्याचार किया करते थे | अत्याचार में पहला काम होता था किसानों को कोड़े से पीटने का, 100-100  कोड़े किसानों को मारे जाते थे, 100  कोड़े खाते-खाते किसान मर जाते थे, फिर अंग्रेज वहीँ तक नहीं रुकते थे, वे उसके बाद उस किसान के परिवार की माँ, बहन और बेटियों का शीलहरण करते थे | 
माँ, बहन और बेटियों के कपडे उतारे जाते थे, पुरे गाँव में उनको नंगा घुमाया जाता था, फिर अंग्रेज अधिकारी उनका सबके सामने शीलभंग करते थे, बलात्कार करते थे और सारे अंग्रेज अधिकारी इसमें शामिल होते थे | इससे अंग्रेज अधिकारियों को अपनी वासना शांत करने का रास्ता तो खुलता ही था, उनको अत्याचार करने और हैवानियत दिखाने का भी रास्ता खुलता था |

परिणाम क्या होता था ? किसानों के घर से शिकायत आती थी इन बलात्कार की घटनाओं की | अंग्रेज अधिकारियों की समस्या ये होती थी की अपने ही सहयोगियों के खिलाफ वो कार्यवाही क्या करे ? मान लीजिये, एक अंग्रेज उच्च अधिकारी है, उसके पास किसी किसान ने ये शिकायत की कि उसके नीचे के अधिकारी ने उस किसान के 
माँ, बहन या बेटियों से बलात्कार किया तो वो ऊपर वाला अधिकारी अपने नीचे वाले अधिकारी को बचाने में लग जाता था और उसको बचाने के लिए फिर अंग्रेजों ने एक रास्ता निकाला और उस रास्ते को कानून में बदल दिया | बलात्कार के खिलाफ अंग्रेजों ने कानून बनाया सबसे पहला, इसमें उन्होंने एक हिस्सा जोड़ा, इसका नाम था Reversal of Burden of Proof | और उस कानून में ये व्यवस्था की कि "जिस माँ, बहन या बेटी के साथ बलात्कार होगा, उस माँ, बहन या बेटी को अंग्रेजों की अदालत में आकर सिद्ध करना पड़ेगा कि उसके साथ बलात्कार हुआ है, जिस अंग्रेज ने बलात्कार किया है उसको कुछ भी सिद्ध नहीं करना पड़ेगा और जब तक सिद्ध नहीं होगा तब तक वो अंग्रेज अभियुक्त नहीं माना जाएगा, पापी नहीं माना जायेगा, अपराधी नहीं माना जाएगा, ये कानून बना दिया अंग्रेजों ने | ये कानून बनते ही इस देश में बलात्कार की बाढ़ आ गयी | हर गाँव में, हर शहर में माँ, बहन और बेटियों की इज्जत से अंग्रेजों ने खेलना शुरू किया, क्योंकि अंग्रेजों को ये मालूम था कि कोई भी माँ, बहन या बेटी अदालत में ये सिद्ध कर ही नहीं सकती कि उसके साथ बलात्कार हुआ है | कानून के गलियां ऐसी टेढ़ी-मेढ़ी बनाई गयी कि किसी भी माँ, बहन या बेटी को ये सिद्ध करना एकदम असम्भव हो जाए कि उसके साथ बलात्कार हुआ है |

आप देखिये कि इससे बड़ा दुनिया में क्या अत्याचार हो सकता है कि जिसके ऊपर अत्याचार हुआ, उसे सिद्ध करना है कि उसके ऊपर अत्याचार हुआ, जिसने अत्याचार किया उसको कुछ भी सिद्ध नहीं करना है कि इसने अत्याचार किया | परिणाम ये होता था कि 100 अंग्रेज बलात्कार करते थे भारत की 
माँ, बहन या बेटियों से तो उसमे से दो-तीन अंग्रेजों के खिलाफ ये साबित हो पाता था और उनको ही सजा हो पाती थी, 97-98 अंग्रेज बाइज्जत बरी हो जाते थे और फिर वो दुबारा यही काम करते थे | हमारे पास दस्तावेज हैं कई अंग्रेज अधिकारियों के, जिन्होंने अपनी पर्सनल डायरी में ये लिखा है | एक अंग्रेज अधिकारी था, कर्नल नील, उसकी डायरी के कुछ पन्ने हैं फोटो कॉपी के रूप में, उसकी नियुक्ति भारत के कई स्थानों पर हुई थी, वाराणसी में वो रहा, इलाहाबाद में वो रहा, बरेली में वो रहा, दिल्ली में वो रहा, बदायूँ में वो रहा, वो अपनी डायरी में लिख रहा है कि "कोई भी दिन ऐसा बाकी नहीं रहा जब मैंने किसी भारतीय औरत के शीलहरण नहीं किया", ये नील की डायरी में उसके लिखे हुए शब्द हैं | आप सोचिये के कितने हैवान थे वो अंग्रेज और ध्यान दीजिये कि ये सब उन्होंने किया कानून की मदद से | एक बात और, बलात्कार के केस में पीडिता से कोर्ट में ऐसे भद्दे-भद्दे और बेहुदे प्रश्न किये जाते हैं कि सुनने वाला लजा जाए, आपकी गर्दन शर्म से झुक जाए, आप सोचिये की पीडिता का क्या हाल होता होगा, यही कारण है कि बलात्कार के 100 मामलों में 95 में तो कोई केस ही दर्ज नहीं होता और जो 5 केस दर्ज भी होते हैं तो उसमे पीडिता को न्याय मिलता ही नहीं है |

मुझे ये कहते हुए बहुत दुःख और अफ़सोस है कि आजादी के दिन यानि 15 अगस्त 1947 को जिस कानून को जला देना चाहिए था, ख़त्म कर देना चाहिए था, वो कानून आजादी के 65 साल बाद भी चल रहा है और आज भी इस देश में 
माँ, बहन और बेटियों के साथ बलात्कार हो रहे हैं और माँ, बहन और बेटियों को अदालत में सिद्ध करना पड़ रहा है कि उनके खिलाफ अत्याचार हो रहा है, अत्याचार करने वाले को कुछ भी सिद्ध नहीं करना पड़ता | आप जानते हैं कि किसी भी माँ, बहन या बेटी से खुले-आम, सरेआम ऐसे सवाल पूछे कि "उसके साथ बलात्कार हुआ या नहीं हुआ", वो अगर सभ्य है, थोड़ी भी सुसंस्कृत है तो जवाब नहीं दे सकती और उसके मौन का फायदा उठाकर ये कानून हमारे देश की करोड़ों माँ, बहन, बेटियों से खिलवाड़ करता है |

दूसरी तरफ भारत के कानून हैं, हमारे देश में न्याय व्यवस्था का जो सबसे बड़ा कानून है, उसका नाम है इंडियन पिनल कोड (IPC), दूसरा कानून है सिविल प्रोसीजर कोड (CPC) और तीसरा कानून है क्रिमिनल प्रोसीजर कोड (CrPC) | ये तीनों कानून भारतीय न्याय व्यवस्था के आधार स्तम्भ हैं और ये तीनों कानून अंग्रेजों के बनाये हुए हैं | 
ये Indian Penal Code अंग्रेजों के एक और गुलाम देश Ireland के Irish Penal Code की फोटोकॉपी है, वहां भी ये IPC ही है लेकिन Ireland में जहाँ "I" का मतलब Irish है वहीं भारत में इस "I" का मतलब Indian है, इन दोनों IPC में बस इतना ही अंतर है बाकि कौमा और फुल स्टॉप का भी अंतर नहीं है | अंग्रेजों का एक अधिकारी था टी.वी.मैकोले, उसका कहना था कि भारत को हमेशा के लिए गुलाम बनाना है तो इसके शिक्षा तंत्र और न्याय व्यवस्था को पूरी तरह से समाप्त करना होगा | Indian Education Act भी मैकोले ने ही बनाया था और उसी मैकोले ने इस IPC की भी ड्राफ्टिंग की थी | ये बनी 1840 में और भारत में लागू हुई 1860 में | ड्राफ्टिंग करते समय मैकोले ने एक पत्र भेजा था ब्रिटिश संसद को जिसमे उसने लिखा था कि "मैंने भारत की न्याय व्यवस्था को आधार देने के लिए एक ऐसा कानून बना दिया है जिसके लागू होने पर भारत के किसी आदमी को न्याय नहीं मिल पायेगा | इस कानून की जटिलताएं इतनी है कि भारत का साधारण आदमी तो इसे समझ ही नहीं सकेगा और जिन भारतीयों के लिए ये कानून बनाया गया है उन्हें ही ये सबसे ज्यादा तकलीफ देगी | और भारत की जो प्राचीन और परंपरागत न्याय व्यवस्था है उसे जडमूल से समाप्त कर देगा"| और वो आगे लिखता है कि " जब भारत के लोगों को न्याय नहीं मिलेगा तभी हमारा राज मजबूती से भारत पर स्थापित होगा" | ये हमारी न्याय व्यवस्था अंग्रेजों के इसी IPC के आधार पर चल रही है |

सुनवाई के लिए सबूत इकट्ठे किये जाते हैं, उन सबूतों के लिए अंग्रेजों के ज़माने का ही एक कानून है इंडियन एविडेंस एक्ट | 
Indian Evidence Act काम करता है गवाह और सबूत के आधार पर और ये दोनों ही बदले जा सकते हैं | गवाह भी बदले जा सकते हैं और सबूत तो इतने आसानी से मिटाए जाते हैं और नए बनाये जाते हैं इस देश में कि आप कल्पना नहीं कर सकते हैं | इसी कारण से, चूकी गवाह बदले जाते हैं, गवाह कैसे बदलते हैं, पता है आपको ? पुलिस बयान लेती है और अदालत में जैसे ही वो गवाह खड़ा होता है, तुरंत मुकर जाता है और कहता है कि पुलिस ने जबरदस्ती ये बयान मुझसे लिया है और जैसे ही वो ये कहता है, वो मुक़दमा, जो 20 मिनट में ख़त्म हो जाता, 10 साल तक चलता रहता है | और यही कारण है कि अंग्रेजी न्याय व्यवस्था में conviction rate  पाँच प्रतिशत है | Conviction Rate समझते हैं आप ? 100 लोगों के ऊपर मुक़दमा किया जाये तो सिर्फ पाँच लोगों को ही सजा होती है, 95 को सजा होती ही नहीं, वो अदालत से बाइज्जत बरी हो जाते हैं | तो इसका मतलब है कि या तो 95 मुकदमे झूठे, या सरकार झूठी, या पुलिस व्यवस्था झूठी या न्याय व्यवस्था कमजोर | ये इंडियन एविडेंस एक्ट ने ऐसा सत्यानाश कर रखा है इस देश का कि सत्य महत्व का नहीं है बल्कि गवाह और सबूत महत्व का है, कई बार पुलिस कहती है कि सत्य हमें मालूम है लेकिन गवाह नहीं, सबूत नहीं है, क्या करे हम ? ना सजा दिलवा सकते हैं, ना किसी को न्याय दिलवा सकते हैं | और न्यायाधीश को सत्य की पहचान करने के लिए बिठाया जाता है, वो न्यायाधीश भी सबूत और गवाह के आधार पर सत्य की तलाश करता है, जब कि सच्चाई ये है कि सत्य अपने आप में ही पूर्ण होता है, उसको कोई गवाह की जरूरत नहीं होती है, उसको कोई सबूत की जरूरत नहीं होती | इस इंडियन एविडेंस एक्ट या कहें भारतीय न्याय व्यवस्था का कैसा मजाक इस देश में हो रहा है उसका एक उदाहरण देता हूँ | 26 नवम्बर को जिन आतंकवादियों ने पाकिस्तान से आकर मुंबई में सैकड़ों निर्दोष लोगों को मार दिया | उनमे से एक पकड़ा गया और उसके ऊपर नौटंकी चली कि नहीं | हम सब को सत्य मालूम है कि इसने सैकड़ों लोगों को मारा, इस मामले में निर्णय देना 10 मिनट का काम था, अब उस पर सबूत ढूंढे गए, गवाह ढूंढे गए और वो मक्कार आतंकवादी मजाक बना रहा है, हँस रहा है | भारतीय न्याय व्यवस्था पर हँस रहा है और दुर्भाग्य से ये हमारी न्याय व्यवस्था नहीं है, ये अंग्रेजों की है |    एक और कानून है जो भारत की माँ, बहन बेटियों को बहुत परेशान कर रहा है, वो है गर्भपात का कानून | हमारे देश में गर्भपात के लिए कानून है, किसी बच्चे को जन्म लेने के पहले मारेंगे तो गर्भपात कह कर छोड़ देते हैं लेकिन उसे जन्म लेने के बाद मारे तो हत्या हो जाती है और 302 का मामला बनता है | बच्चे को जन्म के पहले मारा तो भी हत्या है और जन्म लेने के बाद मारा तो वो भी हत्या ही है, दोनों में सजा एक जैसी होनी चाहिए और वो फाँसी ही होनी चाहिए लेकिन जन्म से पहले मारो तो गर्भपात है और जन्म के बाद मारो तो हत्या है, इसीलिए इस देश के लाखों लालची डौक्टर करोड़ों बेटियों को गर्भ में भी मार डालते हैं क्योंकि गर्भ में मार देने पर उनको फाँसी नहीं होती है | एक करोड़ बेटियों को हर साल गर्भ में ही मार दिया जाता है इसी कानून की मदद से | अब आप बताइए कि बेटी को गर्भ में मारो तो गर्भपात और गर्भ से बाहर आने पर मारो तो हत्या, अगर इस तरह के कानून के आधार पर कोई फैसला होगा तो वो कोई न्याय दे सकता है ? मुकदमे का फैसला होता है कानून के आधार पर और न्याय होता है धर्म के आधार पर , सत्य के आधार पर | धर्म और सत्य से न्याय की स्थापना हो सकती है, कानून से न्याय की स्थापना नहीं हुआ करती है | दुर्भाग्य से हमारे देश में धर्म और सत्य की सत्ता नहीं है, कानून की सत्ता है, Law and Order की बात होती है, धर्म और न्याय की बात नहीं होती है, सत्य की बात नहीं होती है जो अंग्रेज छोड़ कर चले गए उस कानून व्यवस्था की बात होती है और हम ख़ुशी-ख़ुशी ढो रहे हैं आजादी के 65  साल बाद भी |  

भारत में जो राष्ट्रीय महिला आयोग है या राष्ट्रीय मानवाधिकार संगठन हैं, ये सब दिखावे के संगठन हैं, अंग्रेजी का एक शब्द प्रयोग करूँ तो ये सब "Ornamental Organizations" हैं | राष्ट्रीय महिला आयोग के बारे में तो मेरा व्यक्तिगत अनुभव है लेकिन उसका यहाँ जिक्र करना ठीक नहीं होगा, ये मरे हुए संगठन हैं, ये किनके लिए काम करते हैं, भगवान जाने | मैंने देखा है कि इन संगठनों में ज्यादातर राजनीति से जुड़े लोग ही रहते हैं और राजनेताओं की जनता के प्रति क्या विचारधारा है, कहने की आवश्यकता नहीं हैं | इनकी विचारधारा सही होती तो इस देश में गरीबी, बेरोजगारी, भुखमरी नहीं होती |    कैसे मिले न्याय माँ, बहन बेटियों को उस देश में जहाँ कहा गया है -यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता- आप ही बताइए ?   

लेखक भाई राजीव दीक्षित जी 

RAJIV BHAI - A DOCUMENTARY


IN MEMORY OF SHRI RAJIV BHAI


Sunday 14 July 2013

let's know something very imp


एक चेतावनी- समय रहते बचायेंगे तभी हमारी आने वाली पीढ़ी देख पाएगी विरासत!
राजीव भाई को जानने से पहले हमें उस मानसिकता से बाहर आना होगा जिसमें अंग्रेजों ने हमें फसाया था। अर्थात ये बात अपने दिमाग से निकालनी होगी की जिसके पास डिग्री है वो ही व्यक्ति सही ज्ञान दे सकता है क्यूंकि राजीव भाई ने जो भी विकल्प बताये हैं अपने व्याख्यानों में भारत की भ्रष्ट व्यवस्थाओ को अंजाम देने के लिए वो सब recommended reforms और policies भारत का स्वर्णिम इतिहास और दुनिया भर की आधुनिक और विकसित अर्थव्यवस्थाओ के गहरे अध्ययन के बाद ही बताये हैं। और उनका ये अध्ययन और उनका देश के प्रति भाव किसी डिग्री का मोहताज नहीं और न ही उनके चिंतन में किसी तरह के संदेह की कोई गुंजाइश है। ये बात आपको शायद थोड़ी खटके लेकिन मैं बडी विनम्रता से कहना चाहूँगा की एक बार राजीव भाई के बताये गए रास्ते पे चल के देखिये, आपकी आने वाली पीढ़ी को आप पे नाज़ होगा आपकी समझदारी और हिम्मत के लिए।

जिनके पास डिग्री है और जिनको इस देश की क्रूर व्यवस्थाओं का सच पता है या तो वो अपना मूह नहीं खोलेंगे या तो उनको बेदर्दी से दबा दिया जाएगा। अगर 21वी सदी में कोई था जो निर्भीकता से सच को दृड्ता से लोगों के सामने रख पाया तो वो राजीव भाई ही थे।

राजीव भाई के अध्ययन और त्याग का लाभ हर देशवासी को उठाना चाहिए और अपनी आने वाली पीढ़ियों के लिए एक ऐसा भारत देना चाहिए जो सोने के चिढ़िया नहीं सोने का शेर हो। जो की निश्चित रूप से संभव है अगर उस पे संकल्प के साथ काम किया जाये तो।

दुनिया में कई नामुमकिन परिवर्तन हमें देखने को मिले। अब एक और ऐतिहासिक परिवर्तन के लिए हम सब भारत वासियों को चेत जाना होगा जल्दी से जल्दी वरना आने वाली पीढ़ी को जवाब देने की स्थिति नहीं होगी हमारी।

आप खुद से पूछो ये सवाल की आज़ादी को पाने की लडाई में तो हम अपने योगदान नहीं दे पाये, लेकिन आज जब मौका है आज़ादी को बचाने की लडाई में अपना योगदान देने का तो क्यूँ पीछे रहें?

अब आप सोचेंगे की आज़ादी को बचाने की लढाई?? जी, हाँ। अगर अभी भी हम सोते रहे तो भारत को RE-colonize करने का जो षड्यंत्र है वो सफल हो जाएगा। फरक इतना होगा की 18वी शताब्दी में मजबूरी में लूटते थे और आज मज़े में लूट जाएंगे अगर ना जागे तो।
और वो षड्यंत्र क्या है उसके लिए आपको सिर्फ और सिर्फ राजीव भाई को सुनना है। इससे सरल योगदान इतनी बडी लडाई के लिए शायद ही कुछ होगा। जो आग राजीव भाई के जाने से बुझ गयी है अब उसको फैलाने का काम हमारे ज़िम्मे है क्यूंकि अब शायद ही राजीव भाई जैसा कोई फिरसे जन्म ले..1995-98 के दौरान देश भर में धूम मचा दी राजीव भाई के व्याख्यानों ने... और अब उस धूम को एक सैलाब के रूप में खड़ा करना है। सोचिए मत... राष्ट्रधर्म से ऊपर कुछ नहीं।


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क्या आप सचिन तेंदुलकर को जानते है ?

आप शरद पवार को जानते हैं ?

आप दिग्विजय सिंह को जानते हैं ?

आप अन्ना हजारे को जानते है ?

आप बाबा रामदेव को जानते हैं ?


आपका उत्तर है की हम इनको बहुत ही अच्छी तरह से जानते हैं ..

सचिन तेंदुलकर के विज्ञापनों द्वारा ही हम दिनरात उन उत्पादों बूस्ट , विल्स (सिगरेट ) , आदि का उपयोग कर रहे हैं जिनसे हमारे देश का पैसा विदेशो में जा रहा है और हमारे रूपये का मूल्य दिनों दिन गिरता जा रहा है और डॉलर ऊपर जा रहा है

शरद पवार को आये दिन हम न्यूज़ चेनल पर देख लेते है हर साल ये गेहूं को सडाकर नया रिकार्ड बनाते जा रहे हैं (और शराब भी ) लेकिन गरीबों को नहीं दे सकते है चाहे सुप्रीम कोर्ट का आदेश क्यों न हो ये किसी की नहीं सुनते है .

दिग्विजय सिह को आये दिन आप ओसामा जी के गुणगान गाते देख सकते हैं .

अन्ना हजारे जी ने इस उम्र में जो क्रांति लाये हैं वो तो काबिले तारीफ़ है आने वाले समय में शायद ही कोई इस प्रकार का कदम उठा सकता है

लेकिन कहा जाता है की इस क्रांति को चिंगारी बाबा रामदेव ने ही दी थी इसमें भी कोई दोहमत नहीं है

अब ये तो हुयी जाने पहचाने चेहरों की बातें जिन्होंने अपनी TRP (Television Rating पॉइंट ) खूब बढ़ायी

लेकिन क्या आप स्व. श्री राजीव दीक्षित जी को जानते हैं ..... आप कहेंगे नाम तो कुछ सुना हुआ लगता है जी बिलकुल सही असल में आज़ादी और भ्रष्टाचार की इस लडाई की शुरुवात श्री राजीव दीक्षित जी ने ही की थी शायद आपको विश्वास नहीं हो रहा है

आज तक किसी भी न्यूज़ चेनल पर कभी आपने राजीव भाई को देखा नहीं क्योंकि इस देश में आजकल इसे महापुरुषों की कद्र नहीं की जाती है

तो चलिए जानते हैं राजीव भाई के बारे में ...................

राजीव दीक्षित (३० नवम्बर १९६७ - ३० नवम्बर २०१०) एक भारतीय वैज्ञानिक,प्रखर वक्ता और आजादी बचाओ आन्दोलन के संस्थापक थे।
वे भारत के विभिन्न भागों में विगत बीस वर्षों से बहुराष्ट्रीय कम्पनियों के विरुद्ध जन जागरण का अभियान चलाते रहे। आर्थिक मामलों पर उनका स्वदेशी विचार सामान्य जन से लेकर बुद्धिजीवियों तक को आज भी प्रभावित करता है।
बाबा रामदेव ने उनकी प्रतिभा से प्रभावित होकर उन्हें भारत स्वाभिमान (ट्रस्ट) के राष्ट्रीय महासचिव का दायित्व सौंपा था, जिस पद पर वे अपनी म्रत्यु तक रहे। वे राजीव भाई के नाम से अधिक लोकप्रिय थे।

राजीव दीक्षित जी का जन्म उत्तर प्रदेश के अलीगढ़ जनपद की अतरौली तहसील के नाह गाँव में राधेश्याम दीक्षित एवं मिथिलेश कुमारी के यहाँ हुआ। इण्टरमीडिएट तक की शिक्षा फिरोजाबाद से प्राप्त करने के उपरान्त उन्होंने इलाहाबाद से बी. टेक. तथा भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान कानपुर से एम. टेक. प्राप्त की। राजीव के माता-पिता उन्हें एक वैज्ञानिक बनाना चाहते थे।पिता की इच्छा को पूर्ण करने हेतु कुछ समय भारत के सीएसआईआर तथा फ्रांस के टेलीकम्यूनीकेशन सेण्टर में काम किया। तत्पश्चात् वे भारत के पूर्व राष्ट्रपति डॉ० ए पी जे अब्दुल कलाम के साथ जुड़ गये जो उन्हें एक श्रेष्ठ वैग्यानिक के साँचे में ढालने ही वाले थे

किन्तु राजीव भाई ने जब पं० राम प्रसाद 'बिस्मिल' की आत्मकथा का अध्ययन किया तो अपना पूरा जीवन ही राष्ट्र-सेवा में अर्पित कर दिया। उनका अधिकांश समय महाराष्ट्र के वर्धा जिले में प्रो० धर्मपाल के कार्य को आगे बढाने में व्यतीत हुआ। राजीव भाई के जीवन में सरलता और विनम्रता कूट-कूट कर भरी थी। वे संयमी, सदाचारी, ब्रह्मचारी तथा बलिदानी थे। उन्होंने निरन्तर साधना की जिन्दगी जी । सन् १९९९ में राजीव जी के स्वदेशी व्याख्यानों की कैसेटों ने समूचे देश में धूम मचा दी थी। पिछले कुछ महीनों से वे लगातार गाँव गाँव शहर शहर घूमकर भारत के उत्थान के लिए और देश विरोधी ताकतों और भ्रष्टाचारियों को पराजित करने के लिए जन जागृति पैदा कर रहे थे।

राजीव भाई बिस्मिल की आत्मकथा से इतने अधिक प्रभावित थे कि उन्होंने बच्चन सिंह से आग्रह कर-करके फाँसी से पूर्व उपन्यास लिखवा ही लिया। लेखक ने यह उपन्यास राजीव भाई को ही समर्पित किया था। राजीव पिछले 20 वर्षों से बहुराष्ट्रीय कम्पनियों व उपनिवेशवाद के खिलाफ तथा स्वदेशी की स्थापना के लिए संघर्ष कर रहे थे।

भ्रष्टाचार के खिलाफ भारत की सम्पूर्ण आजादी के आंदोलन में आहुति देने वाले भारत स्वाभिमान के राष्ट्रीय सचिव, स्वदेशी आंदोलन के प्रणेता, प्रखर राष्ट्रीय चितंक भाई राजीव दीक्षित जी के निधन के बाद समय मानो रुक सा गया। सम्पू्र्ण राष्ट्र में, विश्व के विभिन्न देशों में शोक की लहर दौड गई। परमात्मा के उस प्रतिभाशाली पुत्र को खोने के बाद मां ही नहीं भारत मां भी आँसू न रोक पाई होगी। लोग कहा करते है कि पूर्व सांसद स्व, प्रकाशवीर शास्त्री के बाद किसी व्यक्तित्व का वक्तव्य सुनकर समय ठहर जाता था तो उस व्यक्ति का नाम था “राजीव भाई”। उन्होंने अपने जीवन, जवानी व अपनी प्रतिभा को मातृभूमि की बलिवेदी पर आहूत कर दिया।

स्वदेशी के प्रखर प्रवक्ता, चिंतक, जुझारू, निर्भीक व सत्य... को दृढ़ता से रखने के लिए पहचाने जाने वाले भाई राजीव दीक्षित जी 30 नवम्बर 2010 को भिलाई (छत्तीसगढ़) में शहीद हो गए | वे भारत स्वाभिमान और आज के स्वदेशी आंदोलन के पहले शहीद है|
लाला लाजपत राय, बालगंगाधर तिलक और विपिनचंद्र पाल को ‘लाल-बाल-पाल’ के नाम से जाना जाता है. ये तीनो स्वदेशी आंदोलन के जन्मदाता थे
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“तेरा वैभव अमर रहे मां हम दिन चार रहे न रहे ।”

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भाई राजीव दीक्षित


स्वदेशी के प्रखर प्रवक्ता, चिन्तक , जुझारू निर्भीक व सत्य को द्रढ़ता से रखने की लिए पहचाने जाने वाले भाई राजीव दीक्षित जी 30 नवम्बर 2010 को भिलाई (छत्तीसगढ़ ) में शहीद हो गए | वे भारत स्वाभिमान और आज के स्वदेशी आन्दोलन के पहले शहीद हैं | राजीव भाई भारत स्वाभिमान यात्रा के अंतर्गत छत्तीसगढ़ प्रवास पर थे | 1 दिसंबर को अंतिम दर्शन के लिए उनको पतंजलि योगपीठ में रखा गया था | राजीव भाई के अनुज प्रदीप दीक्षित और परमपूज्य स्वामीजी ने उन्हें मुखाग्नि दी | परमपूज्य स्वामी रामदेवजी महाराज व आचार्य बालकृष्णजी ने राजीव भाई के निधन पर गहरा दुःख व्यक्त किया है | संपूर्ण देश में 1 दिसंबर को ३ बजे श्रधांजलि सभा का आयोजन किया गया |
राजीव भाई के बारे में
राजीव भाई पिछले बीस वर्षों से बहुराष्ट्रीय कंपनियों और बहुराष्ट्रीय उपनिवेशवाद के खिलाफ तथा स्वदेशी की स्थापना के लिए संघर्ष कर रहे थे | वे भारत को पुनर्गुलामी से बचाना चाहते थे | उनका जन्म उत्तरप्रदेश अतरौली जिले के नाह नाम के गाँव मे 30 नवम्बर 1967 को हुआ | उनकी प्रारंभिक व माध्यमिक शिक्षा फिरोजाबाद में हुयी उसके बाद 1984 में उच्च शिक्षा के लिए वे इलाहबाद गए | वे सैटेलाईट टेलीकम्युनिकेशन के क्षेत्र में उच्च शिक्षा प्राप्त करना चाहते थे लेकिन अपनी IIT कानपूर से B.Tech की शिक्षा आखिरी वर्ष में ही छोड़कर देश को विदेशी कंपनियों की लूट से मुक्त कराने और भारत को स्वदेशी बनाने के आन्दोलन में कूद पड़े | इसी बीच उनकी प्रतिभा के कारण CSIR में कुछ परियोजनाओ पर काम करने और विदेशो में शोध पत्र पढने का मौका भी मिला | वे भगतसिंह, उधमसिंह, और चंद्रशेखर आजाद जैसे महान क्रांतिकारियों से प्रभावित रहे | बाद में जब उन्होंने गांधीजी को पढ़ा तो उनसे भी प्रभावित हुए |
भारत को स्वदेशी बनाने में उनका योगदान
पिछले २० वर्षों में राजीव भाई ने भारतीय इतिहास से जो कुछ सीखा उसके बारे में लोगों को जाग्रत किया | अँगरेज़ भारत क्यों आये थे, उन्होंने हमें गुलाम क्यों बनाया, अंग्रेजों ने भारतीय संस्कृति और सभ्यता, हमारी शिक्षा और उद्योगों को क्यों नष्ट किया, और किस तरह नष्ट किया| इस पर विस्तार से जानकारी दी ताकि हम पुनः गुलाम ना बन सकें | इन बीस वर्षों में राजीव भाई ने लगभग 12000 से अधिक व्याख्यान दिए जिनमें कुछ हमारे पास उपलब्ध हैं| आज भारत में लगभग 5000 से अधिक विदेशी कंपनियां व्यापार करके हमें लूट रही हैं| उनके खिलाफ स्वदेशी आन्दोलन की शुरुआत की | देश में सबसे पहली विस्तृत स्वदेशी-विदेशी वस्तुओं की सूची तैयार करके स्वदेशी अपनाने का आग्रह प्रस्तुत किया| 1991 में डंकल प्रस्तावों के खिलाफ घूम घूम कर जन जाग्रति की और रेलियाँ निकाली | कोका कोला और पेप्सी जैसे पेयों के खिलाफ अभियान चलाया और कानूनी कार्यवाही की |
1991-92 में राजस्थान के अलवर जिले में केडिया कंपनी के शराब कारखानों को बंद करवाने में भूमिका निभाई
|1995-96 में टिहरी बाँध के खिलाफ ऐतिहासिक मोर्चा और संघर्ष किया जहाँ भयंकर लाठीचार्ज में काफी चोटें आई | टिहरी पुलिस ने तो राजीव भाई को मारने की योजना भी बना ली थी|
उसके बाद 1997 में सेवाग्राम आश्रम, वर्धा में प्रख्यात गाँधीवादी, इतिहासकार धर्मपाल जी के सानिध्य में अंग्रेजो के समय के ऐतिहासिक दस्तावेजों का अध्ययन करके धर्मपालजी की आशाओं से भी बढ़कर बहुत ही प्रभावी ढंग से देश को जागृत करने का काम किया | पिछले 10 वर्षों से परमपूज्य स्वामी रामदेवजी के संपर्क में रहने के बाद जनवरी 2009 में परमपूज्य स्वामीजी के नेतृत्व में भारत स्वाभिमान आन्दोलन का जिम्मा अपने कन्धों पर ले जाते हुए 30 नवम्बर 2010 को छत्तीसगढ़ के भिलाई शहर में भारत स्वाभिमान की रणभूमि में शहीद हुए |
उनके अधूरे सपनो को पूरा करने का दायित्व अब उनके अनुज प्रदीप दीक्षित जी ने लिया है और देश भर में स्वदेशी के चिंतन और दर्शन को फ़ैलाने के इस कार्य को सेवाग्राम, वर्धा से संचालित कर रहे है
आप भी इस से जुड़ने के लिए अपना विवरण यहाँ दें

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           भारत माता की जय                                                                                भारत माता की जय                                                                    

वक्रतुण्ड महाकाय सुर्यकोटि समप्रभ

 निर्विघ्नं कुरु मे देव सर्वकार्येषु सर्वदा

THIS BLOG is humble an attempt:
to bring it to mind of our fellow countrymen the glory of our spectacular past
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to convey the message of patriots like BHAI RAJIV DIXIT ji who achieved
 martyrdom serving motherland

an finally to awaken each and everyone who reads it, that
ab bhi jiska khoon na khola khoon nahi wo paani hai
jo desh ke kaam na aaye wo bekaar jawani hai